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वजह

Wednesday, January 7, 20151comments

अहसास भी पुरजोर थे, ख्याल भी बुलन्द थे

बुलन्दियाँ गर न छू सका, इसकी वजह कुछ और थी|

 

इश्क भी था पाक मेरा, चाहतें थी बेहिसाब

मेरी तूं न हो सकी, इसकी वजह कुछ और थी|


हुस्न बेमिसाल था, और अदाएं थी कमाल 

फिर भी रही क्यों दूरियां, इसकी वजह कुछ और थी|


जर जमीं कैसे है मिलते, इसका इल्म तो खूब था 

फिर भी रही क्यों फाका मस्ती, इसकी वजह कुछ और थी|

 

ऊँचे ओहदे तख्तो-ताउस का तरीका याद था,

फिर भी रहे क्यों फर्श पर, इसकी वजह कुछ और थी|

 

समझते थे बात सारी और हकीकत साफ़ थी 

फिर भी रहे खामोश क्यों, इसकी वजह कुछ और थी|

 

फरेबी नजरें इस जहाँ की, दिख रही थी हुबहू,

फिर भी हम क्यों लुट गए, इसकी वजह कुछ और थी|

 

जिसको खुदा तुम कह रहे हो, मैं भी समझता खूब था 

फिर क्यों इबादत छोड़ दी, इसकी वजह कुछ और थी|


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January 8, 2015 at 6:42 AM

इश्क भी था पाक मेरा, चाहतें थी बेहिसाब
मेरी तूं न हो सकी, इसकी वजह कुछ और थी
बहुत खूबसूरत असआर

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