डाली भी नहीं पत्ते भी नहीं
फूलों की बात करूँ कैसे?
सावन भी नहीं बारिशभी नहीं
झूलों की बात करूँ कैसे?
साकी भी नहीं और मय भी नहीं
मस्ती की बात करूँ कैसे?
जर भी नहीं जमीं भी नहीं
हस्ती की बात करूँ कैसे?
मीत नहीं प्रीत भी नहीं
कविता की बात करूँ कैसे?
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