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यमुना बचाओ अभियान

Tuesday, March 17, 20152comments


जल के बिना जीवन संभव नहीं, यही कारण कि हमारे गांव व नगर अधिकतर किसी न किसी जल स्त्रोत अथवा नदी के किनारे बसें है| क्योंकि जल हमारी मूलभूत आवश्यकताओं में है इसलिए नदियों में पर्याप्त शुद्ध जल बहे यह हर एक प्रबुद्ध नागरिक की चिंता है| इसी चिंता का नतीजा था कि प्राचीन काल से ही हमारे पुरखों की जल संरक्षण तकनीक बड़ी उन्नत रही है| नदियों व जल की महिमा इसी बात से समझी जा सकती है कि हमारे ज्यादातर साधू, सन्यासी, महात्मा, तपस्वी गंगा या यमुना इत्यादि नदियों के किनारे रहे है और आज भी अपना स्थान बनाकर वहां रहते हुए साधना कर रहे है|
 
इसलिए इन जीवनदायिनी पवित्र नदियों में पर्याप्त व शुद्ध जल अविरत प्रवाहित होता रहे, इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक एवं प्रत्येक सरकार को सतत प्रयत्न करते रहना चाहिए| जबकि आज इसका उल्टा हो रहा है| नदियों में औद्योगिक रासायनिक प्रदूषण युक्त जल, नगर नगमों के सीवरेज का प्रदूषित जल हर शहर में सतत प्रवाहित होकर नदियों को प्रदूषित कर रहा है| जो गंगा व यमुना नदियाँ को कभी जीवनदायिनी थी आज उनके जल के आचमन से जीवन ख़त्म करने वाले रोग पनप रहे है| जिसकी जिम्मेदार ये नदियाँ नहीं, हम है| क्योंकि प्रदूषित जल इन नदियों में हम मिला रहे है या हमारे सामने प्रदूषित जल इन नदियों में मिल रहा है और हम सोये हुए है| यह विडम्बना ही है कि कल तक जो नदियाँ हमारा जीवन बचाने की क्षमता रखती थी वो आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए हमारे अभियानों की मोहताज हो रही है|

जहाँ तक यमुना नदी को बचाने के अभियान की बात है यह समय समय पर बहुत सारे संत महात्मा तथा प्रबुद्ध नागरिक करते रहे है| 2010 से लगातार इस यमुना बचाओ अभियान में बहुत बड़ी संख्या में लोग लगे हुए है| सर्वप्रथम 2010 में इलाहाबाद में संत महात्माओं ने इस विषय पर बहस छेड़ी| 2010 में इलाहाबाद से दिल्ली तक पैदल यात्रा भी की गई लेकिन उस समय सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया| फिर 2013 में बड़ी संख्या में लोग दिल्ली पहुँचने के लिए हरियाणा से होते हुए दिल्ली की सीमा तक पहुंचे लेकिन सरकार ने उन्हें दिल्ली नहीं पहुँचने दिया| नवम्बर 2014 में सहारनपुर से पैदल चलकर लोग हथिनी कुण्ड बैराज तक पहुंचे और उन्हें लगा कि वहां से पर्याप्त जल यमुना में नहीं छोड़ा जा रहा है और जो जल छोड़ा भी जाता है वह रास्ते में सिंचाई व दिल्ली के निवासियों के पीने के उपयोग में आ जाता है और यमुना के किनारे बसे औद्योगिक नगर जैसे यमुनानगर, पानीपत, दिल्ली, फरीदाबाद, कानपुर और अनेक शहर इसमें गंदे नालों का प्रदूषित जल छोड़ते रहते है| अकेला दिल्ली शहर वजीराबाद से औख्ला तक नजफगढ़ नाले समेत 18 नाले यमुना में गंदे दूषित पानी के गिराता है| और यमुना के पीछे हरियाणा से आये शुद्ध जल को पीने के पानी के रूप में प्रयोग कर लेता है| हरियाणा में जब आगरा कैनाल व गुडगांव कैनाल गंदे पानी से भार आते है जो हरियाणा के चार जिलों में (गुडगांव, मेवात,फरीदाबाद तथा पलवल) के किसानों को जहरीला पानी मिलता है जो फसलों को बर्बाद करता है तथा अनेक बीमारियाँ पैदा कर रहा है|
यमुनोत्री से चलकर इलाहाबाद तक का 1376 किलोमीटर का यमुना मैया का सफ़र बहुत दु:खदायी है| यह नदी गंगा की छोटी बहन मानी जाती है और हमारी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर है| अनेक भक्तों की आस्था इससे जुड़ी है| ब्रज के लोगों का इसमें अटूट विश्वास है और वहां से साधू समाज के लोग आज भी इसी जहरीले से आचमन व स्नान करते है| यमुना में शुद्ध व पर्याप्त जल अगर बहेगा तो लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और संत-महात्माओं की आस्था की सुरक्षा भी होगी|

यह तो सत्य है कि सिंचाई और पीने हेतु पानी का होना आवश्यक है और होना चाहिए लेकिन अगर केंद्र सरकार दृढ इच्छा शक्ति से आगे बढे तो यह कार्य मुश्किल नहीं है और इसके महत्त्व को समझकर निम्नलिखित कार्य किये जाने चाहिये
१1-      यमुना में हथिनी कुण्ड बैराज से 1994 के हरियाणा, दिल्ली,राजस्थान,उतरप्रदेश के मुख्यमंत्रियों द्वारा जो समझौता हुआ था उसे ईमानदारी से लागू किया जाये|
२2-      हिमाचल और उत्तराखंड के क्षेत्र में लखननगर व्यास, रेणुका एवं किसाऊ बांध बनाकर जो जलाशय तैयार हों उनका बारिशों का पानी इकट्ठा करके यमुना में प्रवाहित किया जाय ताकि हरियाणा में सिंचाई और दिल्ली में पीने के पानी की समस्या का निदान हो सके|
३3-      सभी कारखाने जो यमुना में प्रदूषित जल नालों के माध्यम से गिरा रहे है वहां संबंधित सरकारें (दिल्ली,हरियाणा,उतरप्रदेश) जलशोधन संयंत्र स्थापित कर इन नालों का दूषित पानी उपचारित कर, सामानांतर नाला बनवाकर सिंचाई और या अन्य औद्योगिक कार्य हेतु आपूर्ति करे|
४4-      मंत्रालय के नाम में गंगा के साथ साथ यमुना का नाम भी जोड़ा जाये| अगर केंद्र एक समिति बनाकर इस पर लगातार नजर रखे तो देश का इससे बहुत भला होगा| देश के विकास में ये नदियाँ अपना योगदान चिरकाल तक देती रहेगी|
देखते है विकास की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी इस विषय पर क्या करते है| 

हुकम सिंह राणा (पूर्व आईएएस) 
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